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10:25, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=परमानंददास
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कापर ढोटा नयन नचावत कोहे तिहारे बाबा की चेरी।
गोरस बेचन जात मधुपुरी आये अचानक वनमें घेरी॥१॥
सेननदे सब सखा बुलाये बात ही बात समस्या फेरी।
जाय पुकारों नंदजुके आगे जिन कोउ छुवो मटुकिया मेरी ॥२॥
गोकुल वसि तुम ढीट भये हो बहुते कान करत हों तेरी।
परमानंददास को ठाकुर बल बल जाऊं श्यामघन केरी॥३॥
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