1,010 bytes added,
10:52, 18 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विद्यापति
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
सैसव जीवन दुहु सिलि गेल।
श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहुनहु हास।
धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करम सिंगार।
सखइ पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरंजन अपन पयेचर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग।
दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव पेखल अपरुब बाला।
सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि।
दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।
</poem>