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12:47, 18 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विद्यापति
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<poem>
दया करु एक बेर हे माता
कृपा करु एक बेर
जहियाँ सँ माता आहाँ घर अयलऊँ
दुख छोड़ि सुख नहिं भेल
हे जननी दया करु एक बेर
हे जननी…..
जहिया सँ माता सुख देखइ लगलऊँ
नग्र में भइ गेल शोर
हे जननी…..
कोने फुल ओढ़न माँ के
कोन फुल पहिरन
कोने फुल सोलहो सिंगार
हे जननी दया करु एक बेर
हे जननी…..
बेली फुल ओढ़न माँ के
चमेली फुल पहिरन
अरहुल फुल सोलहो सिंगार
हे जननी…..
हे जननी दया…..
पहिरी-ओढि काली कहवर गेली
कुरय लगली अबला गोहारि
हे जननी…..
हे जननी दया करु…..
</poem>
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