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12:56, 18 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विद्यापति
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बारह बरष पर काली जेती नैहर
बारह बरष पर माता जेती नैहर
माहे बिनु रे कहारे कोना जेती
लाले-लाले डोलिया में सबजे रंग ओहरिया हे
माहे लागि गेल बतसो कहारे
एक कोष गेली काली दूई कोष गेली हे
माहे तेसर कोष लागल पीयासे
ओहार उठाये काली चारु दीसी त्कथि
माहे कतहु ने लागल बजारे
जांघिया के चीरी काली शोणित पिलनि
माहे राखल जगत्र कर माने
भनहि विद्यापति सुनू माता काली हे
माँ हे सरा सँ दहब रक्षपाले।
</poem>
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