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08:36, 19 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अखिलेश तिवारी
|अनुवादक=
|संग्रह=आसमाँ होने को था / अखिलेश तिवारी
}}
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<poem>
नदी के ख़्वाब दिखायेगा तश्नगी देगा
खबर न थी वो हमें ऐसी बेबसी देगा
नसीब से मिला है इसे हर रखना
कि तीरगी में यही ज़ख्म रौशनी देगा
तुम अपने हाथ में पत्थर उठाये फिरते रहो
मैं वो शजर हूँ जो बदले में छाँव ही देगा
</poem>
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