भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
212 bytes removed,
07:54, 20 मई 2014
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
विद्वान का ढेलानई सदी</div>
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[ तादेयुश रोज़ेविचनीलेश रघुवंशी]]
</div>
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
इस कविता को सुला देना चाहिए इसके पहले कि आतंक और बर्बरता से शुरू हो हुई नई सदीइसका विद्वान होना धार्मिक उन्माद और बर्बर हमले बने पहचान इक्कीसवीं सदी केइसके पहले कि बदा था इक्कीसवीं सदी की क़िस्मत मेंयह कविता शुरू हो मरते जाना हर दिन बेगुनाह लोगों काहज़ार बरस पीछे ढकेलने का षड्यन्त्र ! आख़िर किया किसने ?इसके पहले कि यह तारीफ़ें बटोरे किसी विस्मरण किसने ? किसने ढकेला जीवन के पल में बुनियादी हक़ों को हाशिए पर ?यह जीवित हो क्या सचमुच इसके पहले कि अपनी ओर आते शब्दों इक्कीसवीं सदी उन्माद और आँखों युद्धोन्माद की यह अभ्यस्त हो इसके पहले कि यह विद्वानों के उपदेश लेना शुरू करे गुज़रने वाले राहगीर कतराकर गुज़र जाते हैं कोई भी नहीं उठाता वह विद्वान ढेला उस ढेले के भीतर सदी होगी याहोगी उजड़ते संसार में एक नन्हीं-सी,सफ़ेद,नंगी कविता जलती रहती है राख हो जाने तक । (रचनाकाल : 2002-2003) हरी पत्ती की तरह ?
</div>
</div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader