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|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम्हारी आवाज़ की चिट्ठी
पढ़वाती हूँ
हवाओं से
और तुम्हारी साँस-सुख महसूस करती हूँ
वृक्षों से
और तुम्हारे अस्तित्व में विलीन हो जाती हूँ
सूर्य से
और तुम्हारा प्रणय ताप रक्त में जी लेती हूँ
मेघों से
और तुम्हारे विश्वासालिंगन में सिमट जाती हूँ
तुम्हारी छवि परछाईं के
रोम रोम के दर्पण में
उतर जाती हैं पुतलियाँ
महुए-से चुए
तुम्हारे शब्दों से
सूँघती हूँ प्रणय की सुगंध।
</poem>
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तुम्हारी आवाज़ की चिट्ठी
पढ़वाती हूँ
हवाओं से
और तुम्हारी साँस-सुख महसूस करती हूँ
वृक्षों से
और तुम्हारे अस्तित्व में विलीन हो जाती हूँ
सूर्य से
और तुम्हारा प्रणय ताप रक्त में जी लेती हूँ
मेघों से
और तुम्हारे विश्वासालिंगन में सिमट जाती हूँ
तुम्हारी छवि परछाईं के
रोम रोम के दर्पण में
उतर जाती हैं पुतलियाँ
महुए-से चुए
तुम्हारे शब्दों से
सूँघती हूँ प्रणय की सुगंध।
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