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03:48, 26 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
शब्द
तुम्हारी तरह
देखते हैं मुझे
और मैं
शब्दों की तरह तुम्हें
ईश्वर के प्रेम की
छाया है तुम्हारी आत्मा पर
ईश्वर अंश है
तुम्हारा चित्त
तुम्हारे प्रेम में
प्रेम का ईश्वर देखती हूँ
तुम्हें स्पर्श कर
मैं प्रेम का ईश्वर छूती हूँ
शब्दों में
तुमने रचा है प्रेम का ईश्वर
पवित्र पारदर्शी
ईश्वरीय प्रेम ….।
</poem>