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04:10, 26 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पुष्पिता
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}}
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<poem>
प्रेम में
व्यक्ति
अपने प्रिय के लिए रचता है
बाहर और भीतर
एक नई दुनिया
प्रेम के अनुकूल
और उसके ही
प्रेम से बनी
जैसे कोरे काग़ज़ पर
वह लिखता है
प्रेम के लिए चिट्ठी
प्रेम की सारी परिभाषाओँ से अलग।
प्रेम की नई भाषा
अपने अनोखे प्रिय के
समर्पित प्यार के लिए
वैसे ही
वह उसके लिए
बनाना चाहता है नया घर
प्रेम-घर।
अतीत के सभी चिन्हों को मिटाकर
बीते हुए एकाकीपन से पियराये
और गली हुई उदास साँसों से
धुआँई दीवार पर
अपने प्यार की चमकती साँसों से
धवल कर देना चाहता है
ज़िन्दगी के अकेलेपन की
कालिख हुई दीवार को
प्रिय के प्यार के
सुख के लिए
रचना चाहता है
एक नया संसार
जो किसी भी दुनिया से
सुन्दर हो
और उसके कहे की तरह
विश्वसनीय
प्रकृति की बदनीयती से भी
बचाकर रखना चाहता है
अपना प्यार
प्रकृति की दैविक, दैहिक और भौतिक आपदाओं से
परे रखना चाहता है वह
अपना प्यार और प्रिय
प्रकृति को
सबसे सुन्दर सृष्टि के रूप में
बचाए रखना चाहता है
अपना प्रिय
और उसके लिए
प्रकृति
प्रकृति से मिटा देना चाहता है
वह हिंसा का खून
और अविश्वास का झूठ
कि उसकी प्रिया के ह्रदय से
डर मिट सके।
अपने जीवन का
सर्वोत्तम सौंपकर
पृथ्वी की ओर से
अपनी प्रिया की
आँखों में विश्वास का संसार
रचना चाहता है वह
निर्भय होकर
अपनेपन से भरकर
उसके भुजपाश में सिमटकर
विश्वास के वक्ष का आलिंगन
ले सके
जैसे पक्षी …।
</poem>