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04:48, 26 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
नदी को
नदी की तरह सुनो
सुनाई देगी नदी
अपनी अंतरंग आवाज की तरह।
चाँद को
चाँद की तरह देखो
दिखाई देगी चाँदनी
अपनी आँख की तरह।
धरती को
धरती की तरह अनुभव करो
महसूस होगी पृथ्वी
अपनी तृप्ति की तरह।
प्रकृति को
प्रकृति की तरह स्पर्श करो
तुममें उतर जायेगी प्रकृति
प्रेम सुख की तरह।
</poem>