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07:15, 26 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पवन
छूती है नदी
और लहर हो जाती है।
पवन
डुबकी लगाती है समुद्र में
और तूफ़ान हो जाती है।
पवन
साँसों में समाकर
प्राण बन जाती है
और
देखने लगती है सबकुछ
आँखों में आँखें डालकर
और चलने लगती है
भीड़ के भीतर।
</poem>