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घाट से आते हुए<br>कदम्ब के नीचे खड़े कनु को<br>ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने<br>जिस राह से तू लौटती थी बावरी<br>आज उस राह से न लौट<br><br>
उजड़े हुए कुंज<br>रौंदी हुई लताएँ<br>आकाश पर छायी हुई धूल<br>क्या तुझे यह नहीं बता रहीं<br>कि आज उस राह से<br>कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ<br>युद्ध में भाग लेने जा रही हैं!<br><br>
आज उस पथ से अलग हट कर खड़ी हो<br>बावरी!<br>लताकुंज की ओट<br>छिपा ले अपने आहट प्यार को<br>आज इस गाँव से<br>द्वारका की युद्धोन्मत्त सेनाएँ गुजर रही हैं<br>मान लिया कि कनु तेरा<br>सर्वाधिक अपना है<br>मान लिया कि तू<br>उसकी रोम-रोम से परिचित है<br>मान लिया कि ये अगणित सैनिक<br>एक-एक उसके हैं:<br>पर जान रख कि ये तुझे बिलकुल नहीं जानते<br>पथ से हट जा बावरी<br><br>
यह आम्रवृक्ष की डाल<br>उनकी विशेष प्रिय थी<br>तेरे न आने पर<br>सारी शाम इस पर टिक<br>उन्होंने वंशी में बार-बार<br>तेरा नाम भर कर तुझे टेरा था-<br><br>
आज यह आम की डाल<br>सदा-सदा के लिए काट दी जायेगी<br>क्योंकि कृष्ण के सेनापतियों के<br>वायुवेगगामी रथों की<br>गगनचुम्बी ध्वजाओं में<br>यह नीची डाल अटकती है<br><br>
और यह पथ के किनारे खड़ा<br>छायादार पावन अशोक-वृक्ष<br>आज खण्ड-खण्ड हो जाएगा तो क्या -<br>यदि ग्रामवासी, सेनाओं के स्वागत में<br>तोरण नहीं सजाते<br>तो क्या सारा ग्राम नहीं उजाड़ दिया जायेगा?<br><br>
दुःख क्यों करती है पगली<br>क्या हुआ जो<br>कनु के ये वर्तमान अपने,<br>तेरे उन तन्मय क्षणों की कथा से<br>अनभिज्ञ हैं<br><br>
उदास क्यों होती है नासमझ<br>कि इस भीड़-भाड़ में<br>तू और तेरा प्यार नितान्त अपरिचित<br>छूट गये हैं,<br><br>
गर्व कर बावरी!<br>कौन है जिसके महान् प्रिय की<br>अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हों?<br>