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03:59, 29 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिता भारती
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
पिछले पंद्रह दिन दिन से
हमारे पास खाने के लिए कुछ नही है
कहती है रुखसाना
दिल-दिमाग में चल रहे झंझावात से
लड़कर निष्कर्ष निकालती है रुखसाना
दंगे होते नही करवाएं जाते है
हम जैसों का वजूद रौंदने के लिए
जो रात-दिन पेट की आग में खटते हुए
अपने होने के अहसास की लड़ाई लड़ रहे है
</poem>