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07:54, 29 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कबीर
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<poem>
एकै कुँवा पंच पनिहारी। एकै लेजु भरै नो नारी॥
फटि गया कुँआ विनसि गई बारी। विलग गई पाँचों पनिहारी॥
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