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04:51, 30 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गगन गिल
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<poem>
एक दिन वह जागेगी और पायताने से उठकर जा चुका होगा ईश्वर. एक दिन
वह जागेगी और सूख चुकी होगी आँख. उतर चुका होगा खुरंट. थम गई होगी पीड़ा.
एक दिन वह झाँकेगी स्वस्थ होकर दर्पण में और भर जायेगी विस्मय से. घाव के बिना ही
वहां बंधी होगी पट्टी एक, चोट जिसे लगना होगा,
अभी होगी बहुत दूर. किसी भविष्य में
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