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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> आरती कीजै सरस्वती की,<BR>जननि विद्या बुद्धि भक्ति की। आरती ..<BR>.
जाकी कृपा कुमति मिट जाए।<BR>सुमिरण करत सुमति गति आये,<BR>शुक सनकादिक जासु गुण गाये।<BR>वाणि रूप अनादि शक्ति की॥ आरती ..<BR>.
नाम जपत भ्रम छूट दिये के।<BR>दिव्य दृष्टि शिशु उध हिय के।<BR>मिलहिं दर्श पावन सिय पिय के।<BR>उड़ाई सुरभि युग-युग, कीर्ति की। आरती ..<BR>.
रचित जास बल वेद पुराणा।<BR>जेते ग्रन्थ रचित जगनाना।<BR>तालु छन्द स्वर मिश्रित गाना।<BR>जो आधार कवि यति सती की॥ आरती..<BR>
सरस्वती की वीणा-वाणी कला जननि की॥
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