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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem>जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।<BR>ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता॥ जय..<BR>अरिकुल पद्म विनासनि जय सेवक त्राता।<BR>जग जीवन जगदम्बा, हरिहर गुण गाता॥ जय..<BR>. सिंह को वाहन साजे, कुण्डल है साथा।<BR>देव वधू जह गावत, नृत्य करत ता था॥ जय..<BR>सतयुग रूपशील अतिसुन्दर, नाम सती कहलाता।<BR>हेमांचल घर जन्मी, सखियन संगराता॥ जय..<BR>. शुम्भ निशुम्भ विदारे, हेमांचल स्याता।<BR>सहस्त्र भुज तनु धरि के, चक्र लियो हाथा॥ जय..<BR>सृष्टि रूप तुही है, जननी शिवसंग रंगराता।<BR>नन्दी भृङ्गी बीन लही सारा मदमाता॥ जय..<BR>. देवन अरज करत हम चित को लाता।<BR>गावत दे दे ताली, मन में रङ्गराता॥ जय..<BR>श्री प्रताप आरती मैया की, जो कोई गाता।<BR>सदासुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता॥ जय...</poem>