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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>सुन्दर सुभग कुँवारि एक जा‌ई।
कहा कहौं यह बात रूप गुन प्रेम कोटि भरि ला‌ई॥

भूलि गये जित-तित सब ब्रज में सुख की लहरि बढ़ा‌ई।
धनि लहनौ वृषभानु गोपकौ, भाग्य दसा चलि आ‌ई॥

धनि आनंद जसोदारानी अपने भवनहिं ला‌ई।
बृन्दावन में सखि यह प्यारी भाग अधिक सुख पा‌ई॥
</poem>
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