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13:30, 30 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>रानी कीरति कुंवरि जाई॥
सुंदर सुभग मनोहर मंगल परम सुलच्छनि सब मन भाई।
सबै अलौकिक रूप मधुर गुन अमित प्रेम-सागर लहराई॥
चिदानंद-रस हरि की अह्लादिनि-सक्ति सहज निज रूप छिपाई।
धनि-धनि भाग भानु नृप के जिन के घर यह कन्या बनि आई॥
धनि रावल, धनि-धनि बरसानों, धनि गोपी, जिन गोद खिलाई॥
नंद-जसोदा धन्य, आइ जिन यहाँ सरित सुख-सुधा बहाई॥
</poem>