भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>रटे जा राधे-राधे, जपे जा राधे-राधे।
प्यारे ब्रजराज-कुमार, भजे जा राधे-राधे॥-टेक॥
या ब्रज की महिमा भारी, नहिं जानैं अज-त्रिपुरारी,
जहँ प्रकटे नंद-कुमार, रटे जा राधे-राधे॥-१॥
जहँ रोहिनि-जसुमति मैया दाऊ-से नेही भैया,
नँद-बाबा करैं दुलार, भजे जा राधे-राधे॥-२॥
जहँ अगनित सखा पियारे, खेलैं रँग न्यारे-न्यारे
गैंयन के झुंड अपार, जपे जा राधे-राधे॥-३॥
अति नगर सुघर बरसानौ, माँ कीरति, पितु वृषभानौ,
प्रगटी राधा सुख-सार, रटे जा राधे-राधे॥-४॥
आनँद-घन-रासी राधे, राधे बिन मोहन आधे,
राधा ही जीवन-सार, भजे जा राधे-राधे॥-५॥
है राधा माधव-आत्मा, राधा-बल हरि सर्वात्मा,
है महासक्ति अनिवार, जपे जा राधे-राधे॥-६॥
है महाभावमयि राधा, प्रेमानँद-उदधि अगाधा,
राधा-सँग नित्य बिहार, रटे जा राधे-राधे॥-७॥
जग-राग-रहित, अति रागी, गोपीजन अति बड़भागी,
जिन पायौ प्रभु कौ प्यार, भजे जा राधे-राधे॥-८॥
गोपिन महँ सब सिरमौर, मुनि-मन-हर की चित-चोर,
राधा की हूँ बलिहार, जपे जा राधे-राधे॥-९॥
राधा की रसमयि लीला, कोउ समुझै रसिक हठीला,
जाकौ वेद न पायौ पार, रटे जा राधे-राधे॥-१०॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>रटे जा राधे-राधे, जपे जा राधे-राधे।
प्यारे ब्रजराज-कुमार, भजे जा राधे-राधे॥-टेक॥
या ब्रज की महिमा भारी, नहिं जानैं अज-त्रिपुरारी,
जहँ प्रकटे नंद-कुमार, रटे जा राधे-राधे॥-१॥
जहँ रोहिनि-जसुमति मैया दाऊ-से नेही भैया,
नँद-बाबा करैं दुलार, भजे जा राधे-राधे॥-२॥
जहँ अगनित सखा पियारे, खेलैं रँग न्यारे-न्यारे
गैंयन के झुंड अपार, जपे जा राधे-राधे॥-३॥
अति नगर सुघर बरसानौ, माँ कीरति, पितु वृषभानौ,
प्रगटी राधा सुख-सार, रटे जा राधे-राधे॥-४॥
आनँद-घन-रासी राधे, राधे बिन मोहन आधे,
राधा ही जीवन-सार, भजे जा राधे-राधे॥-५॥
है राधा माधव-आत्मा, राधा-बल हरि सर्वात्मा,
है महासक्ति अनिवार, जपे जा राधे-राधे॥-६॥
है महाभावमयि राधा, प्रेमानँद-उदधि अगाधा,
राधा-सँग नित्य बिहार, रटे जा राधे-राधे॥-७॥
जग-राग-रहित, अति रागी, गोपीजन अति बड़भागी,
जिन पायौ प्रभु कौ प्यार, भजे जा राधे-राधे॥-८॥
गोपिन महँ सब सिरमौर, मुनि-मन-हर की चित-चोर,
राधा की हूँ बलिहार, जपे जा राधे-राधे॥-९॥
राधा की रसमयि लीला, कोउ समुझै रसिक हठीला,
जाकौ वेद न पायौ पार, रटे जा राधे-राधे॥-१०॥
</poem>