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दिंग्नूपुर झनक उठे
घन कुन्तल-मेघ घिरे कब सुध-बुध क्षण-पल की चम-चम-चम जब चमकी चंचल-चंचल जल की
हीरक-सी छवि, छलकी
ऐसी रस-धार बही