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स्त्रियाँ / अनामिका

24 bytes added, 11:59, 2 मई 2008
हिज्जे
पढ़ा गया हमको<br>
जैसे पढ़ा जाता है कागजकाग़ज<br>
बच्चों की फटी कॉपियों का<br>
‘चनाजोरगरम’ के लिफाफे लिफ़ाफ़े के बनने से पहले !<br>
देखा गया हमको<br>
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे<br>
सुना गया हमको<br>
यों ही उड़ते मन से<br>
जैसे सुने जाते हैं फिल्मी फ़िल्मी गाने<br>
सस्ते कैसेटों पर<br>
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !<br><br>
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह<br>
एक दिन हमने कहा–<br>
हम भी इंसा इंसान हैं<br>हमें कायदे क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर<br>
जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद<br>
नौकरी का पहला विज्ञापन।<br><br>
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई<br>
एक अदृश्य टहनी से<br>
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफवाहेंअफ़वाहें<br>
चींखती हुई चीं-चीं<br>
‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–<br>
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं<br>
अगरधत्त जंगल लताएं !<br>
खाती-पीती, सुख से ऊबी<br>
और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही<br>
शगल शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।<br>
फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’<br>
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)<br>
बाकी बाक़ी कहानी बस कनखी है।<br><br>
हे परमपिताओं,<br>
परमपुरुषों–<br>
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो !<br><br>
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