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|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई
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गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
रब्ता बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैग़ाम से जल जाते हैं
</poem>
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