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<poem>
(राग आसावरी-तीन ताल)

भजौ नित राधा नाम उदार।
जाहि श्याम नित रटत रहत हिय भरि उल्लास अपार॥
चौदह भुवन-लोकत्रय-स्वामी अखिल जगत-‌आधार।
सो‌इ नित जाके हाथ बिकानो, करत रहत मनुहार॥
जाके दरस हेतु मुनि तरसत जानि सार-कौ-सार।
सुमिरौ सो‌इ राधा-पद-पंकज निसि-दिन बारंबार॥
</poem>
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