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रिश्ता /अनामिका

7 bytes added, 12:20, 2 मई 2008
हिज्जे
वह बिलकुल अनजान थी!<br>
मेरा उससे रिश्ता बस इतना था<br>
कि हम एक पंसारी के गाहक ग्राहक थे<br>
नए मुहल्ले में।<br><br>
वह मेरे पहले से बैठी थी<br>
टॉफी टॉफ़ी के मर्तबान से टिककर<br>
स्टूल के राजसिंहासन पर।<br>
मुझसे भी ज्यादा थकी दीखती थी वह<br>
फिर भी वह हँसी !<br>
उस हँसी का न तर्क था<br>
न व्याकरण<br>
न सूत्र<br>
न अभिप्राय !<br>
वह ब्रह्म की हँसी थी।<br><br>
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