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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 6 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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बरस रही प्रभु-कृपा सभी पर बिना भेद अनवरत अपार।
किंञ्तु किंतु कर पाते अनुभव श्वास-हीन हम मोहागार॥पर प्रभु-कृपा न वञ्चित वंचित रखती कभी किसीको परम उदार।
समुचित मधुर-तिक्त औषध दे हरती रहती रोग-विकार॥
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