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नीच नराधम होने पर भी, मुझको कम न दिया तुमने।
समझ अयोग्य नहीं फिर कुछ भी मुझसे छीन लिया तुमने॥-१॥
नहीं शरणमें गया तुहारीतुम्हारी, नहीं दयाका बना भिखारी, रहा सदा प्रतिकूञ्लप्रतिकूल, भुलाया मुझको किन्तु नहीं तुमने।
दिया दयाका दान, न मुझसे बदला कुछ चाहा तुमने॥-२॥
भटक रहा भव-अटवी में, नित, किन्तु न सोचा क्या होगा हित,