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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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इसको भी अपनाता चल,
उसको भी अपनाता चल,
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।
इसको भी अपनाता चलबिना प्यार के चले न कोई, आँधी हो या पानी हो,<br>उसको भी अपनाता चलनई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी हो,<br>राही हैं सब एक डगर तपे प्रेम केलिए, सब पर धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,कौन हृदय है नहीं प्यार लुटाता चल।<br><br>की जिसने की दरबानी हो,
बिना प्यार के चले न कोईतट-तट रास रचाता चल, आँधी हो या पानी हो,<br>नई उमर की चुनरी हो या कमरी फटी पुरानी होपनघट-पनघट गाता चल,<br>तपे प्रेम प्यासी है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।राही हैं सब एक डगर के लिए, धरिवी, जले प्रेम के लिए दिया,<br>कौन हृदय है नहीं सब पर प्यार की जिसने की दरबानी हो,<br><br>लुटाता चल।।
तट-तट रास रचाता चलकोई नहीं पराया,<br>पनघट-पनघट गाता चलसारी धरती एक बसेरा है,<br>प्यासी इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा है हर गागर दृग का गंगाजल छलकाता चल।<br>,राही हैं सब श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,सभी मछरियाँ एक डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।<br><br>ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?
कोई नहीं परायागलियाँ गाँव गुँजाता चल, सारी धरती एक बसेरा है,<br>इसका खेमा पश्चिम में तो उसका पूरब डेरा हैपथ-पथ फूल बिछाता चल,<br>श्वेत बरन या श्याम बरन हो सुन्दर या कि असुन्दर हो,<br>हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।सभी मछरियाँ राही हैं सब एक ताल की क्या मेरा क्या तेरा है?<br><br>डगर के सब पर प्यार लुटाता चल।।
गलियाँ गाँव गुँजाता चलहृदय हृदय के बीच खाइयाँ,<br>पथ-पथ फूल बिछाता चललहू बिछा मैदानों में,<br>हर दरवाजा रामदुआरा सबको शीश झुकाता चल।<br>राही धूम रहे हैं सब एक डगर के सब युद्ध सड़क पर प्यार लुटाता चल।।<br><br>, शान्ति छिपी शमशानों में,जंजीरें कट गई, मगर आजाद नहीं इन्सान अभीदुनियाँ भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,
हृदय हृदय के बीच खाइयाँ, लहू बिछा मैदानों में,<br>धूम रहे हैं युद्ध सड़क पर, शान्ति छिपी शमशानों में,<br>जंजीरें कट गई, मगर आजाद नहीं इन्सान अभी<br>दुनियाँ भर की खुशी कैद है चाँदी जड़े मकानों में,<br><br> सोई किरन जगाता चल,<br>रूठी सुबह मनाता चल,<br>प्यार नकाबों में न बन्द हो हर घूँघट खिसकाता चल।<br>
राही हैं सब एक डगर के, सब पर प्यार लुटाता चल।।
</poem>
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