|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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{{KKCatGhazal}}
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न सोचा न समझा न सीखा न जाना
मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना
ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना
सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना
न सोचा न समझा न सीखा न जाना<br>ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरेंमुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना<br><br>ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना
ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना<br>गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिनसिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना<br><br>है दुशवार काँटों से दामन बचाना
ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरें<br>ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना<br><br> गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिन<br>है दुशवार काँटों से दामन बचाना<br><br> करो लाख तुम मातम-ए-नौजवानी<br>
प 'मीर' अब नहीं आयेगा वोह ज़माना
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