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{{KKGlobal}}{{KKLokRachna|भाषा=हरियाणवी|रचनाकार=मांगेराम|संग्रह=}}{{KKCatHaryanaviRachna}}<poem>पृथ्वी कहण लगी ब्रह्मा से, लाज बचा द्यों नें मेरी|मेरी।उग्रसैन का कंस अधर्मी जिन्हें ऋषियों पे विपता गेरी ||
यज्ञ-हवन तप-दान रहे ना होगी सूं बलहीन प्रभु |प्रभु।संध्या तर्पण अग्नि-होत्र कर दिए तेरा-तीन प्रभु |प्रभु।वेद शास्त्र उपनिषदों में करता नुक्ताचीन प्रभु |प्रभु।राम-नाम सबका छुडवाया कुकर्म में लौ-लीन प्रभु |प्रभु।जरासंध शीशपाल अधर्मी करते हैं हेरा-फेरी ||१||॥१॥
गंगा-यमुना त्रिवेणी का बंद करया अस्नान प्रभु |प्रभु।जहाँ साधू संत महात्मा योगी करया करै गुजरान प्रभु |प्रभु।मंदिर और शिवाले ढाह दिए घाल दिया घमशान प्रभु |प्रभु।हाहाकार मची दुनिया म्हं जल्दी चल भगवान प्रभु |प्रभु।मैं मृतलोक म्हं फिरूं भरमती आके शरण लई तेरी ||२||॥२॥
न्याय-नीति और मनु-स्मृति भूल गया संसार प्रभु |प्रभु।भूल गया मर्याद जमाना होरी मारो-मार प्रभु |प्रभु।कोन्या ज्ञान रह्या दुनिया म्हं होग्ये अत्याचार प्रभु |प्रभु।पत्थर बाँध कै ऋषि डुबो दिए जमुना जी की धार प्रभु |प्रभु।संत भाजग्ये हिमालय पै मथुरा में डूबा ढेरी ||३||॥३॥
सतयुग म्हं हिरणाकुश मरया नृसिंह रूप धरया प्रभु |प्रभु।त्रेता म्हं तने रावण मारया बण कै राम फिरया प्रभु |प्रभु।कृष्ण बण कै कंस मार दे होज्या बृज हरया प्रभु |प्रभु।कहै ‘मांगेराम’ रम्या सब म्हं, हूँ सवेक शाम तेरा प्रभु |प्रभु।बृज म्हं रास दिखा दे आकै गोपी जन्म घरां लेरी ||४||॥४॥</poem>