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दुःख है, तुमसे बिछड़ गया हूँ
::किन्तु तुम्हारी सुधि न बिसारूँ!
उलझन में दुःख में वियोग में
::अब तुम याद बहुत आती हो;
घनी घटा में तुमको खोजूँ
::मैं विद्युत् में तुम्हें निहारूँ;
जब से बिछुड़े हैं हम दोनों
::मति-गति मेरी बदल गई है;
पावस में हिम में बसंत में
::हँसते-रोते तुम्हें पुकारूँ!
तब तक मन मंदिर में मेरे
::होती रहे तुम्हारी पग-ध्वनि;
तब तक उत्साहित हूँ, बाजी
::इस जीवन की कभी न हारूँ!
तुम हो दूर दूर हूँ मैं भी
::जीने की यह रीती निकालें,