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<poem>
(राग भीमपलासी-ताल कहरवा)

मेरी ममता सारी केवल तुममें प्रिय! हो जाय अनन्य।
राग-रन्गका को‌ई प्राणि-पदार्थ-परिस्थिति रहे न अन्य॥
धन-जन, जीवन-प्राण तुहीं सब, भुक्ति-मुक्ति सब तुम हो एक।
सब तज भजूँ तुम्हें ही केवल, यही बने जीवनकी टेक॥
मिटें सभी संकल्प, कटे सारा तुरंत मायाका जाल।
रहे छलकता सदा हृदयमें प्रेम तुहारा मधुर रसाल॥
सहज समर्पण हो जीवन प्रियतम पद-पंकजमें, सब त्याग।
लहरायें अति ललित तरंगें सुधा-समुद्र शुद्ध अनुराग॥
</poem>
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