1,160 bytes added,
11:43, 24 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग भैरवी-ताल कहरवा)
सद्विचार हों उदित सर्वदा, प्रभुमें रहे सुदृढ़ विश्वास।
होता रहे नित्य जीवनमें सदाचारका विमल विकास॥
शुचि सत्कर्मोंमें प्रवृत्ति हो, बढ़े सदा दैवी संपत्ति।
धर्म सुरक्षित रहे, पड़े चाहे कितनी ही घोर वि्पत्ति॥
बनता रहे सहज ही तन-मन-वाणीसे सबका हित नित्य।
नित्य-सत्य-प्रिय प्रभुमें रति हो, मिटे जगत्-कल्पना अनित्य॥
</poem>