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08:05, 26 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग जंगला-तीन ताल)
जान गया जो भरी हुई हैं दुर्बलता मेरे अंदर।
दूर करूँगा उन्हें तुरत अब मैं, प्रभुके बलको पाकर॥
मैं प्रमाद-आलस्य न आने दूँगा कभी, तनिक अभिमान।
शक्ति-प्रेरणा-स्फ़ूर्ति सभी, सा के्वल प्रभुकी ही जान॥
देखूँगा प्रत्येक कर्म शुभमें मैं प्रभुका ही, बस, हाथ।
पल-पलमें नव बल पाऊँगा, पाकर प्रभु-चरणोंका साथ॥
करते हैं सब जगमें जैसे बाह्य वस्तुओंका नित दान।
मुक्त हस्तसे वैसे ही मैं दूँगा प्रभुका प्रेम महान॥
पाकर प्रेम परम प्रभुका, फिर होगा सारा जग पावन।
सबमें फिर निर्बाध चलेगी लीला उनकी मन-भावन॥
</poem>