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08:06, 26 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग जैतश्री-ताल धमार)
तव अनन्त आशा का दीपक अमर जला दो जीवनमें।
मरण-अनन्तर सुप्रभात हो तव पद-पंकज सेवनमें॥
ले लो सब आनन्द, और यह प्रीति गीति सब ले लो नाथ!।
भीतर-बाहर एकमात्र हो तुम ही मेरे जीवन-नाथ!॥
</poem>