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10:44, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
पुराण-प्रज्ञा का फल भला कैसे भूल सकता हूं!
दाता का वहां
मेमने पर दिल आ जाता है
.--उसे खाने का
भागते न भागते
शरण लेते
आत्मा
छिपने के लिए है
काया में
ईश्वर से
स्वांग है लाश
</poem>
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