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पीठ कोरे पिता-8 / पीयूष दईया

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हंसो हरि।

वे चिरनिद्रा में चले गये हैं तुम्हें देखने के लिए
क्या (अ) परिग्रह है
राह खोजते हुए आगे

बढ़ते चले जाने का
अपने प्रांजल प्रकाश में

ऐसे हमें देखते
हैं

सब में
: निशान उनके नहीं
जो प्रकट हुए
बल्कि उनके जो कभी घटे नहीं
पिता

अनुभूति माया है
हम गल्प
</poem>
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