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10:53, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
मेरे पिता ने कभी एक शब्द भी नहीं कहा
अपने दुखों का
न मां ने
भाइयों से कभी बात नहीं हुई
चलते चलते भी साथ
हम
अकेले रहे
जीवन में
निज एकान्त
सादगी भीतर उदात्त
सजीव
खींच
लिया ना जाने किसने
पिता
बीते कल से आये
सामने हैं
--लाश
हमें अकेला छोड़ देती
</poem>