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पीठ कोरे पिता-20 / पीयूष दईया

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<poem>
ओखली में सर दे कर यूं लौट
आया हूं
जैसे चिता में पिता

वक्त। रक्त की तरह बह रहा है
मां।

आकाश से एक तारा तोड़ कर
अपनी आंखों में चमका लो
या माथे पर पोंछ दो

सिंदूर।
</poem>
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