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{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं कौन हूं पिता
बचपन में जवाब दे देते
क्यों बड़ा होना पड़ता
उम्र में
वह कौन है जिसने हमें जन्म दिया मेरे बेटे
लुभाते नातों के पहले
मानो मोम हो
--उन्हीं दिनों की गिनती हो सकती है
जिन्हें हम खो चुके हैं
प्रश्नाश्चर्य में लाते मुझे
जान लो
पिघलती जुदाई में
कभी होना नहीं
और सुन सकने में
छुला लो
ठहरो
जो मैंने कभी कहा नहीं
उसे सुनने
कल्पना हो सकता है जीवन
एक और में तुम्हारा पिता
कल्पना से बाहर रहा
</poem>
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मैं कौन हूं पिता
बचपन में जवाब दे देते
क्यों बड़ा होना पड़ता
उम्र में
वह कौन है जिसने हमें जन्म दिया मेरे बेटे
लुभाते नातों के पहले
मानो मोम हो
--उन्हीं दिनों की गिनती हो सकती है
जिन्हें हम खो चुके हैं
प्रश्नाश्चर्य में लाते मुझे
जान लो
पिघलती जुदाई में
कभी होना नहीं
और सुन सकने में
छुला लो
ठहरो
जो मैंने कभी कहा नहीं
उसे सुनने
कल्पना हो सकता है जीवन
एक और में तुम्हारा पिता
कल्पना से बाहर रहा
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