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11:08, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पीयूष दईया
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<poem>
...और फूलों का कल नहीं होता।
--अन्तोनियो पोर्किया।। हिन्दी अनुवाद: अशोक वाजपेयी
अपनी तरह जीना
क्या फूल की तरह है?
फूल का घर नहीं होता
धड़कता हुआ
दिल है वह
अकेला और सुन्दर
स्वच्छन्द और निरपेक्ष
फूल की सुवास
भला किस मसरफ़ की होगी
फूल को छोड़ सकता है कोई
कभी भी अभी
(सं)सार में
एक सम्बन्ध से ख़ाली होना
खिलना और बुझना
</poem>