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<poem>
कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो

उन चीज़ों के खिलाफ़
जिन्हें पाने के लिए आये हो इस तरफ़

ज़रूरतों की गठरी कन्धे से उतार देखो
कोने में खड़े होकर नकली चमक से सजा
तमाशा-ए-असबाब देखो

बाज़ार आए हो कुछ लेकर ही जाना है
सब कुछ पाने की हड़बड़ी के खिलाफ़ देखो

डण्डी मारने वाले का हिसाब और उधार देखो
चैन ख़रीद सको तो ख़रीद लो
बेबसी बेच पाओ तो बेच डालो

किसी की ख़ैर में न सही अपने लिये ही
लेकर हाथ में जलती एक मशाल देखो

कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो.
</poem>
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