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<poem>
तुम्हारा सब-कुछ इतना तत्काल है
शायद ही कोई तुम्हें गा सकता हो
विलम्बित में

तुम्हें विलम्बित में ले जाना
संगीत को प्रपात की गरिमा से दूर ले जाना है

जैसे दुनिया अपने होने को
धीरे-धीरे स्थगित किये जाती है
वैसे ही तुम उसका होना
तुरन्त वहाँ सम्भव करते हो

ऐसे में तत्काल को
विलम्बित में बाँधने का विचार ही
झरने के कोलाहल से दूर जाने जैसा लगता है

बहुत सारी चीज़ों को
फटकारकर एक ही बार में
दुरुस्त कर देने वाली तुम्हारी युक्ति देखकर
यही लगता है
जैसे रागों की धैर्य भरी साधना में
क्रान्ति
द्रुत में ही सम्भव है

वहाँ विलम्बित में बाँधने का जतन
उतना ही विस्मय भरा है
जितना तुमको तत्काल से छिटकाकर
अवकाश में पसार देना.
</poem>
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