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05:53, 31 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहुल राजेश
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<poem>
अभिनव प्रयोगों से गुजरता लोकतंत्र
और संभावनाओं से भरा मंच
कंपनियाँ आश्वस्त
वे कभी घाटे में नहीं रहेंगी
जब तक उनके साथ है तंत्र
और इतना बड़ा गणतंत्र.
</poem>
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