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04:09, 1 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आशुतोष दुबे
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<poem>
जंगल में आग लगने पर
पेड़ जंगल छोड़ कर भाग नहीं जाते
जब आग उनका माथा चूमती है
उनकी जड़ें मिट्टी नहीं छोड़ देतीं
जब पंछियों के कातर - कलरव से
विदीर्ण हो रहा होता है आसमान
चटकती हैं डालियाँ
लपटों के महोत्सव में
धधकता है वनस्पतियों का जौहर
उसी समय घोंसले में छूट गए अंडे में
जन्म और मृत्यु से ठीक पहले की जुम्बिश होती है
धुँए, लपट, आँच
चटकती डालियों का हाहाकार
और ऊपर आसमान में पंछियों की चीख-पुकार सच है
और उतनी ही सच है
संसार के द्वार पर एक नन्हीं-सी चोंच की दस्तक.
</poem>