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उन क्षणों में / नीलोत्पल

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<poem>
समुद्र ख़ाली था
जाल हटा लिए गए
लहरें किनारों पर रेत में सुस्ताती रहीं
सारी मछलियां उड़ गईं आसमान की ओर
तारों में चमक बरकरार थी

घोंघे और आक्टोपस
पृथ्वी का एंटीना थे
एक चुप जिसने समुद्र को घेर लिया

आवाज़ें रिक्त, समुद्र ख़ामोश

कुछ इस तरह जीवन को जाना

समुद्र और जीवन से ज़्यादा मौन
तुममें खो जाने में था

उन क्षणों में था
जब तुम्हें छू रहा था

आह, समय ईथर है
तुम्हारे बंद होठों की तरह
सबसे चुप और थरथराता
</poem>
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