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अमृतफल / स्वप्निल श्रीवास्तव

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तुम्हारे अमृतफल पर दुष्टों की नजर है
कौवे अपने ठोढ़ से इसे घायल कर देना चाहते हैं
बाज पहट रहे हैं अपनी चोंच
कुछ लोग दरख्त पर चढ़कर ऊधम मचाना चाहते हैं
तोड़ लेना चाहते हैं अमृतफल
तुम्हारे अमृतफल की तरफ बढ़ रहे हैं
दरिंदों के हाथ
कोमल और निष्पाप अमृतफल इन दिनों
सुरक्षित नहीं रह गये हैं
इनके पीछे हिंसक लोगों की भीड़ लगी हुई है
कुछ लोगों के हाथ में पत्थर हैं
जो तुम्हारे अमृतफल की सुरक्षा में
लगे हुए हैं, उनके भीतर अमृतफल
पाने की बलवती इच्छा है
</poem>
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