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07:33, 1 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीलोत्पल
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<poem>
निष्ठायें स्थिर वस्तु नहीं होतीं
वे समय और सुविधा के साथ
बदलती रहती हैं
बाज निष्ठायें इतनी छिनाल होती हैं कि
वे अपने जन्मदाता को बदलकर
दूसरे धर्मपिता की खोजकर लेती हैं
निष्ठायें अंधी नहीं होतीं
उन्हें साफ-साफ दिखायी देता है
वे जानती हैं, उन्हें बायें चलना है या दायें
वे दिन गये जब पतिव्रता होती थीं निष्ठायें
यह अदलाबदली का जमाना है जहां
नैतिकता के नियम लागू नहीं होते
उनके लिए कई पुरुष दिल खोलकर
बैठे हैं
उनके पास किसी के गोद में बैठने का
विकल्प खुला है
यह लिव-इन रिलेशनशिप का जमाना है
जब तक मन किया रहे फिर पीठ फेर कर
चल दिये
ग्लोबल हो चुकी हैं निष्ठायें
उन्हें कहीं भी जाने के लिए पासपोर्ट
अथवा चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत
नहीं है
</poem>