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Kavita Kosh से
दो घड़ी और ठहर, देख लूँ , चेहरा तेरा
जीते जी मार ही डाला है मुझे यारों ने
रूठे दिलबर को यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
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