भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
दो घड़ी और ठहर, देख लूँ , चेहरा तेरा
नक्श का अक्शअक्स आँखों से, मेरे दिल में उतर जाने दे
जीते जी मार ही डाला है मुझे यारों ने
रूठे दिलबर को यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
 
</poem>
481
edits