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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल|अनुवादक=|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल}} {{KKCatKavita}} <poem>
लेटा पढता होता हूं
तो किताब उठाये रखता है दाहिना
और लिखो
पालथी मार कर लिखो।
'''1990 मंगलेश डबराल की एक कविता पढकर।'''
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